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Video: श्रीमद्भगवद्गीता ने कैसे ओलिंपिक मेडल जीतने में की मदद, इतिहास रचने के बाद क्या बोलीं मनु भाकर?: संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक यात्रा

पेरिस ओलंपिक 2024 में भारत की मनु भाकर ने 10 मीटर एयर पिस्टल महिला सिंगल में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। मनु भाकर इस उपलब्धि को हासिल करने वाली देश की पहली महिला शूटर बन गई हैं। लेकिन मनु की यह यात्रा आसान नहीं थी; इसमें संघर्ष और समर्पण की कई कहानियां छुपी हुई हैं।

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उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी पूरी ऊर्जा के साथ लड़ रही थी। मैं आभारी हूं कि कांस्य पदक जीत सकी। मैंने भगवद गीता पढ़ी है और हमेशा वही करने की कोशिश की जो मुझे करना चाहिए, बाकी सब भगवान पर छोड़ दिया।’ पच्चीस मीटर पिस्टल स्पर्धा की विश्व चैंपियन निशानेबाज ने कहा, ‘हम भाग्य से नहीं लड़ सकते।’

किराए पर पिस्टल लेकर खेला था नेशनल

मनु भाकर की शुरुआती दिनों की कहानी बेहद प्रेरणादायक है। एक समय था जब मनु के पास अपनी पिस्टल भी नहीं थी। उन्होंने अपना पहला राष्ट्रीय टूर्नामेंट किराए की पिस्टल से खेला था। अमर उजाला से बातचीत में मनु ने बताया, “शुरुआत में, मेरे पास अपनी पिस्टल नहीं थी, तो मैंने विनीत सर की पिस्टल किराए पर ली थी। मुझे यह भी नहीं पता था कि ट्रिगर कितना अंदर दबाना होता है। ग्रिप बनाने में भी काफी दिक्कत होती थी।”

इन तमाम मुश्किलों के बावजूद, मनु ने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा, “मुझे पता था कि मुझे निशानेबाजी करनी है। मैंने सोचा कि जैसे-तैसे करके मैं चला लूंगी। अगर आपके अंदर एक जुनून हो तो आप कोई भी मुश्किल पार कर सकते हैं।”

पिस्टल लाइसेंस के लिए जद्दोजहद

मनु भाकर के लिए लाइसेंस प्राप्त करना भी एक कठिनाई से भरा हुआ अनुभव था। उनके पिता, रामकिशन भाकर, ने बताया कि लाइसेंस के लिए उन्हें हर रोज 45 किलोमीटर दूर झज्जर जाना पड़ता था। अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते थे, जबकि एशियन यूथ गेम्स नजदीक आ रहे थे और मनु को प्रैक्टिस के लिए पिस्टल की जरूरत थी। पुलिस और मजिस्ट्रेट ने तो सहयोग किया लेकिन तत्कालीन एडीसी ने उनकी एक नहीं सुनी।

लाचार होकर, मनु के पिता ने हरियाणा के शिक्षा मंत्री से गुहार लगाई और सीएमओ और खेल मंत्री को ट्वीट भी किया। दो महीने बाद, उनकी मेहनत रंग लाई और मनु को लाइसेंस मिल गया।

सहवाग से सीखा क्रिकेट शूटिंग के अलावा अन्य खेलों में भी मनु का योगदान

मनु भाकर ने न केवल शूटिंग में, बल्कि अन्य खेलों में भी अपना हाथ आजमाया है। वह बॉक्सिंग और किक बॉक्सिंग भी खेलती थीं। शूटिंग से पहले, मनु ने वीरेंद्र सहवाग की झज्जर क्रिकेट अकादमी में क्रिकेट की भी ट्रेनिंग ली थी। लेकिन जब स्कूल में शूटिंग रेंज बनी तो उन्होंने शूटिंग को चुना और उसमें ही अपना करियर बनाने का निर्णय लिया।

मनु भाकर की यह कहानी संघर्ष, दृढ़ संकल्प और जुनून की है। पेरिस ओलंपिक में उनका प्रदर्शन एक मिसाल है कि कैसे कठिनाइयों के बावजूद, अगर इंसान का हौसला बुलंद हो, तो वह किसी भी ऊंचाई को छू सकता है।

इस प्रेरणादायक यात्रा के लिए मनु भाकर को बधाई और आने वाले समय में उनकी सफलता के लिए शुभकामनाएं!

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